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भारत जोकि त्योहारों का देश यहां हर त्योहार को अलग-अलग राज्यों में विशेष रूप से मनाया जाता है। देश में अलग-अलग जगहों में बैसाखी या वैशाखी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। बैसाखी का त्योहार हर साल सिख धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार हर साल विक्रम सम्वंत के पहले महीने में पड़ता है। सिखों के प्रमुख त्योहारों में से एक त्योहार बैसाखी का है। बैसाखी या वैसाखी पर्व को बंगाल में नबा वर्ष, असम में बिहू और केरल राज्य में पूरम विशु के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं इस साल 2023 में बैसाखी कब है?
भारत में बैसाखी के पर्व को मनाने का इतिहास (बैसाखी या वैसाखी महोत्सव इतिहास) क्या है? साथ ही साथ बैसाखी या वैशाखी पर्व का क्या महत्व है और इसे कैसे मनाया जाता है इन सभी की जानकारी आपको लेख में जानकारी दी गई है।
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बैसाखी कब है?
हर साल बैसाखी में पंजाब में उदासीन नृत्य भांगड़ा /गिद्दा किया जाता है। उसी दिन जगह-जगह मेलों का आयोजन किया जाता है। इसी दिन पंज प्यारों को याद किया जाता है। वैशाखी पर्व मुख्यता किसानों का पर्व है इस दिन रविवार को सूर्य की फसल पक कर तैयार होती है। उसी दिन गुरुगोविंद ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उसी दिन सिखों द्वारा उनके सरनेम को सिंह के रूप में अपनाया गया था। हर साल बैसाखी 14 अप्रैल को मनाई जाती है। इस साल 2023 में भी वैशाखी 14 अप्रैल को है।
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बैसाखी या वैसाखी महोत्सव की मुख्य विशेषताएं
लेख का नाम | बैसाखी कब है? क्या है बैसाखी के पर्व का इतिहास, महत्व और मनाने का तरीका |
उत्सव का नाम | बैसाखी या वैसाखी |
बैसाखी के अन्य नाम | बसोआ, बिसुआ, जुड़ शीतल, पोहेला बोशाख, विशु, पुथांडू, बिहू, विशु |
क्यों मनाया जाता है | इसी दिन खालसा पंथ की स्थापना की, गुरु गोविन्द सिंह और पंच प्रेम के सम्मान में |
यादगार पर्व को जाना जाता है | विमुवत संक्रांति, मेष संक्रांति |
अनुयायी | हिन्दू, सिख |
बिशाखी कब है | 14 अप्रैल |
बैशाखी मनाई जाती है | उत्तर भारत में मुख्यता सिख धर्म द्वारा |
उद्देश्य | गंगा सना, मेले का आयोजन, रवि की सफलता की टाईट |
साल | 2023 |
क्या है बैसाखी के पर्व का इतिहास
वैशाखी मुख्य रूप से किसानों का प्रमुख त्योहार है जिसे भारत के पंजाब, हरियाणा और इसके आस-पास के राज्यों में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व हर साल अप्रैल माह में मनाया जाता है। इस दौरान रवि की फसल पक कर तैयार होती है। फसल काटने के बाद किसानों द्वारा नए साल का जश्न मनाया जाता है। वैशाखी का पर्व नए साल के स्वागत के लिए मनाया जाता है। उसी दिन सिखों के 10 वें गुरु गुरुगोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।
बैसाखी या वैसाखी महोत्सव इतिहास
एक बार की बात है जब 1699 में सिखों के अंतिम गुरु गुरुगोविंद सिंह ने सभी सिखों को आमंत्रित किया था। सभी लोग गुरु की आज्ञा पाकर आनंदपुर साहिब मैदान में इक्ठा हुए। गुरु गोविन्द जी के मन में अपने शिष्यों की परीक्षा लेने के विचार के बारे में उन्होंने अपनी तलवार को आज्ञा से बताई हुई कहा – “मुझे सर चाहिए” यह सुनकर सभी शिष्य असमंजस में आ गए। उसी भीड़ से लाहौर के रहने वाले दयाराम ने अपने सर गुरु की शरण में हाजिर किया। जिसके बाद गुरु गोविन्द सिंह जी उस शिष्य को अपने साथ अंदर ले गए और उसी नशे से अंदर खून की धारा बहने लगी। बाहर सभी लोग समझ गए कि दयाराम का सर काट लिया गया है।
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गुरु गोविन्द सिंह जी इसके बाद फिर से बाहर आयें और फिर कहें ;-”मुझे सर चाहिए” गुरु के ऐसा ही कहें सहारनपुर के धर्मदास ने अपने सर गुरु के शरण में अर्पित करने के लिए अपना कदम आगे बढ़ाते हैं। धर्मदास को भी गुरु द्वारा अंदर ले जाया गया और फिर से रक्त की धारा अंदर से बहती हुई दिखाई दी। इसी प्रकार गुरु को अपना सर दान करने के लिए और 3 लोग हार मान राय, मोहक चंद, साहिब चंद आगे आएं और फिर से रक्त की धारा अंदर से बहने लगी। बाहर लोगों को लगा की पांचों की बलि दी जा रही है। लेकिन इतने में ही गुरु गोविन्द सिंह उन सभी 5 लोगों को अपने साथ बाहर लेकर आते हैं। सभी आश्चर्य में पड़ जाते हैं।
गुरु गोविन्द ने सभी को उनकी जगह के बारे में बताया है। मैं इन लोगों की परीक्षा ले रहा था और यह सभी परीक्षा में सफल हो गए हैं। गुरु गोविन्द सिंह ने इस प्रकार इन 5 लोगों को अपने पांच प्यादों के रूप में पेश किए गए दावों और इन पांचों को अमृत का रस पैन जांच और कहा आज से तुम लोग सिंह कहलाओगे। और उन्हें बाल, दाढ़ी स्थलाकृति के निर्देश दिए और उन्हें पंचक धारण करने का भी निर्देश दिया। इसी घटना के बाद से गुरु गोविन्द राय, गुरु गोविन्द सिंह कहलाये और सिखों के नाम के आगे भी सिंह शब्द जुड़ गए। और इसी दिन की याद में सिख समुदाय द्वारा बैसाखी का त्योहार मनाया जाता है।
बैसाखी मनाने का तरीका (बैसाखी कैसे मनाएं)
- बैसाखी या वैशाखी पर्व के अवसर पर स्थान – गुरुद्वारों को माना जाता है।
- सिख धर्म के लोग गुरुवाणी संख्या में हैं। इस दिन खीर, शरबत बनाया जाता है और गुरुद्वारों में लोअर के अनुमान लगाए जाते हैं।
- रात के समय घर के बाहर लोग लकड़ियां जलाते हैं और अपनी मानसिक स्थिति को लेकर गिद्दा और भंगड़ा करते हैं।
- वैशाखी के दिन सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोह से पहले चैट रूम से निकाला जाता है। जिसके बाद दूध और जल से स्नान करके गुरुग्रंथ साहिब को तख़्त पर रखा जाता है।
- इसके बाद पंच प्यारे पंचबनी गाते हैं।
- अरदास के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है।
- प्रसाद लेने के बाद सिख लोग “लंगर” में हो जाते हैं। और अपनी इच्छा से कारसेवा करते हैं।
- समान शुभ अवसरों पर गुरु गोविन्द सिंह और उनके पंच प्रेमों को याद किया जाता है और उनके सम्मान में कीर्तन किया जाता है।
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बैसाखी या वैसाखी का हिंदी में महत्व बैसाखी के पर्व का महत्व
- हिंदुओं में वैशाखी के दिन नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है।
- वैशाखी योगफल का पर्व है इस दिन किसान अच्छी सफलता के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हैं।
- हर साल बैसाखी का पर्व 13 अप्रैल को मनाया जाता है।
- मान्यता के अनुसार इसी दिन सिखों के 10वें और अंतिम गुरु गुरुगोविंद सिंह ने वर्ष 1699 में ही केसगढ़ साहिब आनंदपुर साहेब में खालसा पंथ की स्थापना की थी।
- खालसा पंथ की स्थापना का उद्देश्य लोगों को उस समय के मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त कर उनके जीवन को सफल बनाना था।
- बैसाखी या वैसाखी सिखों के नए साल का पहला दिन होता है। समान के दिन ही सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए भी इस दिन को बड़ा ही धूमधाम से मनाया जाता है।
- इस दिन लोग एक दूसरे के घर जाकर वैशाखी की प्राथमिकता देते हैं और जगह-जगह मेले को भी संकेत देते हैं।
- बैसाखी एक कृषि पर्व है जब पंजाब और उसके आस-पास के राज्य में रवि की उपज पक कर तैयार हो जाती है तो बैसाखी का त्योहार मनाया जाता है।
- फसल के अटक पर इस पर्व को असम में भी मनाया जाता है जिसे वहां पर बिहू कहा जाता है। इसी बंगाल राज्य में इस पर्व को वैशाख कहा जाता है।
- वैशाखी को मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसी दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है इसी कारण बैसाखी को मेष संक्रांति भी कहा जाता है।
- हिंदू धर्म के अनुसार बैसाखी के दिन ही मां गंगा की धरती पर अवतरण हुआ था इसी वजह से इस दिन नदी में स्नान करने की नौकरी कर रहा है।
- वैशाखी के दिन व्हीट, तिल, गन्ने, तिलहन आदि फालतू की चर्बी लगाई जाती है।
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बैसाखी या वैसाखी पर्व से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)-
देश में सिख समुदाय के लोगों द्वारा हर साल 14 अप्रैल को वैशाखी का त्योहार मनाया जाता है।
बैसाखी को हर साल 14 अप्रैल को मनाई जाती है। 14 अप्रैल को गलत है।
बैसाखी पर्व को गुरु गोविन्द सिंह और उनके पंच प्रेमों की याद में मनाया जाता है। इसी दिन रवि की फसल की सगाई भी लगाई जाती है। इस दिन सिखों के नए साल का पहला दिन होता है।
पंजाब, हरियाणा और इसके आस-पास के राज्यों में यह पर्व ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस पर्व को हर राज्य में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। बशाखी को बसोआ, बिसुआ, जुड़ शीतल, पोहेला बोशाख, विशु, पुथांडू, बिहू, विशु आदि नामों से अलग-अलग राज्यों में जाना जाता है।
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